महेंद्र गढ़ 14 मई
गांव गढ़ी में चल रही सात दिवसीय श्री राम कथा के चौथे दिन कथाव्यास ने सीता स्वयंवर का प्रसंग सुनाया। कथा वाचक उदय राम शास्त्री ने बताया कि राजा जनक भगवान शिव के वंशज थे और भोलेनाथ का धनुष उनके राज महल में रखा था। एक बार महाराज जनक ने अपनी पुत्री सीता के स्वयंवर की घोषणा का साथ ये भी एलान कर दिया कि जो धनुष की प्रत्यंचा को चढ़ा देगा, उसी से मेरी पुत्री सीता का विवाह होगा। शिव धनुष कोई साधारण धनुष नहीं था बल्कि उस काल का ब्रह्मास्त्र था।
उस चमत्कारिक धनुष के संचालन की विधि राजा जनक, माता सीता, आचार्य परशुराम और आचार्य विश्वामित्र को ही ज्ञात थी। जनक राज को इस बात का डर सताने लगा था कि अगर धनुष रावण के हाथ लग गया तो इस सृष्टि का विनाश हो जाएगा। इसलिए विश्वमित्र ने पहले ही भगवान राम को उसके संचालन की विधि बता दी थी। जब श्री राम द्वारा वह धनुष टुट गया तभी परशुराम को बहुत क्रोध आया लेकिन आचार्य विश्वामित्र एवं लक्ष्मण के समझाने के बाद कि वह एक पुरातन यन्त्र था इसलिए संचालित करते ही टूट गया तब जाकर परशुराम का क्रोध शांत हुआ।
राम ने जब प्रत्यंचा चढ़ा कर धनुष को तोड़ा और माता सीता से उसका विवाह सम्पन्न हो गया। मंगलवार को प्रसंग समाप्त होने पर 56 भोग का प्रसाद वितरित किया गया। इस मौके पर भारी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें