गांव आकोदा में बाबा साध धाम पर मकर संक्रांति 14 जनवरी 2024 पर विशाल मेले का आयोजन किया गया। जिसमें भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने पहुंचकर बाबा के दरबार में अपनी हाजरी लगाई व मन्नत मांगी। मेले में बाबा साध कमेटी द्वारा पकौड़े का प्रसाद व मीठे चावल का प्रसाद ग्रामीणों को दिया गया। कार्यक्रम में इलाके के प्रसिद्ध गायक कलाकारों द्वारा दिनभर बाबा की महिमा का गुणगान किया गया। मेले में महिलाओं व बच्चों ने जमकर खरीदारी की इसके साथ-साथ बच्चों ने झूले का आनंद भी लिया। कार्यक्रम में कांग्रेस के युवा नेता एवं विधायक राव दान सिंह के पुत्र अक्षत राव पहुंचे। उन्होंने मंदिर कमेटी को 11 हजार का आर्थिक सहयोग दिया।
बता दे कि खंड के गांव आकोदा स्थित बाबा साध धाम इलाके में आस्था व श्रद्धा का प्रतीक है। जिससे आस-पास के दर्जनों भर गांवों के लोगों की आस्था जूड़ी हुई है। क्षेत्र के गांव खुडाना, गढ़ी, ढाणी मालियान, बास खुडाना, आदलपुर व भूरजट स्थित अन्य गांवाें में जब भी नई गाय या भैस आती है तो उसका प्रथम दूध व दही का भोग बाबा को लगाया जाता है। लोगों के अनुसार जो दूध वाला मवेशी दूध नही देता हो तो बाबा की प्रसाद बोलते ही दूध दे देता है। बाबा के धाम पर शुक्ल पक्ष की हर द्वादशी के दिन बाबा का मेला लगता है जिसमें भक्तों द्वारा हर व्यक्ति को मीठे चावल का प्रसाद दिया जाता है तथा हर घर में खीर चूरमा का भोग लगाया जाता है। इस दिन हजारों लोग बाबा के धाम पर आकर रोग शोक से मुक्ति पाकर मन वांछित फल प्राप्त करते है।मंदिर कमेटी सदस्यों ने बताया कि बाबा के धाम पर साल मंे तीन बार विशाल मेले व भंडारे का आयोजन किया जाता है। वर्ष का पहला मेला मकर संक्रांति को लगाया जाता है। दूसरा मेला श्रावण माह की द्वादशी के दिन लगता है व तीसरा मेला 16 दिसम्बर को बाबा की मूर्ति स्थापना के उपलक्ष्य में लगाया जाता है।
क्षेत्र के बुजुर्ग लोगों के अनुसार विक्रमी सम्वत 1584 फाल्गुन शुक्ला एकादशी को सन 1528 को एक हरिदास नाम का एक साधु गांव के जाेहड़ की पाल पर आकर रहने लगा था। जिसने द्वादशी के दिन एक शमी वृक्ष की सूखी छड़ी लगाकर जोहड़ के पास अपनी धूनी रमा ली थी। जिसके चंद दिनों बाद में ही वह सूखी टहनी हरी भरी होकर लहलहाने लगी। जब इस विषय में गांव के लोगों को पता चला तो क्षेत्र के लोग साधु हरिदास को बाबा साध कहकर उनका सम्मान करने लगे। बाबा हरिदासजी ने अपने पूर्वजों के नक्शे कदम पर चलते हुए एक गाय रखी जिसका नाम गौरी था। रामायण में महर्षि वशिष्ठ के पास कामधेनू थी उसकी बेटी सुरभी हुई तथा उसकी बेटी नन्दनी थी। उसके बाद का प्रमाण प्राप्त नही होता तथा उसी परम्परा को आगे बढाते हुए उन्होनें अपनी गाय को गौरी नामक संज्ञा दी। बाबा हरिदास के दो शिष्य हुए जिनमें एक का नाम तुलसीदास था दूसरे का नाम मोहनदास था। दोनो ही अपने गुरू की तरह उच्च कोटि के सिद्ध संत थे।
लोगों के अनुसार एक बार एक अपंग आदमी घिसटता हुआ बाबा के दर पर आया। उसकी बाबा पर अपार श्रद्धा थी बाबा ने प्रसन्न होकर अपनी योग शक्ति से अपना एक पैर अपने भक्त को भेंट स्वरूप दे दिया और स्वयं लंगड़ा साध की उपाधि प्राप्त की। दोनों साधुओं की समाधि आज भी सरोवर की पाल पर विराजमान है। जो भवन निर्माण के समय करीब तीन-चार फुट नीचे विराजमान थी। उसके बाद से लगातार हर महीने की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को बाबा के धाम पर मेला लगता है और साल में एक बार मकर सक्रान्ति के दिन महा मेला लगता है।
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